Yug Purush

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8TH SEMESTER ! भाग- 62 ( Mindsucked-1)

भाग -1


उस एक कॉल ने मुझे इतना डरा दिया ,जितना मैं  खुद से नही डरा था....ना जाने घरवाले मुझे लेकर क्या क्या अरमान लिए बैठे थे और यहाँ मैं उनके अरमानो पर एक झूठी बुनियाद की परत चढ़ा था...हॉस्टल  के जिस रूम मे मैं रहता था,इस वक़्त उस रूम के बीच-ओ-बीच अभी मैने आग सुलगा कर रक्खी थी...मेरे जहन मे सिर्फ़ एक ख़याल था कि जब रिज़ल्ट आएगा तो मैं क्या कहूँगा घरवालो से...उन्हे क्या एक्सक्यूस दूँगा....??? क्यूंकि टीचर नहीं पढ़ाते.. या पढ़ाई अच्छे से नहीं होती.. ये तो मै कह ही नहीं सकता, किसी भी सूरत मे... क्यूंकि फिर वो बोलेंगे की जिसने टॉप मारा उसके इतने नंबर कैसे आ गये...?? अब यदि मै आगे कहु की.. उसने अलग से प्राइवेट क्लासेस की थी तो फिर घरवाले कहेँगे की... तूने क्यों नहीं की...??? मतलब मै हर जगह से फस चुका था... साला, आत्महत्या कर लूँ क्या...?? सारा टेंशन ही एक साथ हचाक से  ख़त्म...

"बीमार हो गया था"ऐसा बोल दूँगा, मैने सोचा...

लेकिन ये कुछ फिट नही हुआ....इसके बाद कई  और आइडियास आए,लेकिन एक भी ढंग का नही था...और मैने दो घंटे और ऐसे ही बर्बाद कर दिया, टाइम देखा तो रात के 12 बज रहे थे....अरुण अब भी कान मे हेडफोन घुसा कर पढ़ने मे बिज़ी था,ना तो वो मेरी हरकते देख रहा था और ना ही कुछ बोल रहा था...साला कमीना,कुत्ता, हरजायी

मैं अभी तक रूम मे बहुत कुछ कर चुका था...लेकिन वो तब से चुप चाप पड़ा था और जब 1 बज गया तो अरुण ने पढ़ना बंद किया और मेरे पास आकर बोला...

"और ले मज़े, साले जब पढ़ने को बोल रहा था तब तो होशियारी पेल रहा था..."

"यही बोलने तू अपने बेड से उठकर मेरे बेड पर आया है...??"

जवाब मे अरुण ने मेरी बुक उठाई और हर यूनिट मे 3-3 क्वेस्चन मार्क करके बोला

"हर साल इनमे से एकात आ ही जाता है, या फिर इनसे रिलेटेड... कोई सा भी question हो इन्ही के answer लिख देना... थोड़ा बहुत नंबर से चेक करने वाला देगा ही... इसलिए इन्हे सुबह उठकर पढ़ लेना और 2-2 नंबर वाले जरूर देख लेना.. 10-12 नंबर उधर से कवर हो जायेगा.... बस पेपर निकल जायेगा ."

"सच मे पेपर निकल जाएगा..."

"खून से लिखकर दूं क्या अब"

"थैंक्स  यार..."

सोया तो मैं एक बजे था, लेकिन फिर भी मेरी नींद सुबह के चार बजे अपने आप खुल गयी, आज ना ही सर दर्द दे रहा था और ना ही सुबह उठते ही कुछ और  करने की इच्छा हो रही थी ,कुल मिलाकर कहे तो एग्जाम्स  के कारण मेरी  पूरी फटी पड़ी थी...मैने उठते ही बुक खोली और अरुण के बताए क्वेस्चन को रट्टा मारने लगा, रट्टा इसलिए क्यूंकी समझने का टाइम नही था.. क्यूंकि यदि समझने बैठता तो फिर एक यूनिट भी शायद ठीक से नहीं हो पाता... इसलिए मैने रट्टा मारना ही सही समझा....

मैने न्यूमेरिकल तक को याद कर लिया और जैसे-जैसे क्वेस्चन याद होते जाते, मेरा कॉन्फिडेन्स बढ़ने लगा... कभी कभी मेरा कॉन्फिडेंस इतना उछाल मारने लगता की मैं पढ़ते हुए अचानक चिल्लाने लगता... कि.. यदि दो दिन पहले से पढ़ता तो साला मैं तो टॉप मार देता... अधजल गगरी छलकत जाए.... वाली कहावत तो सुनी ही होगी ना ...?? बस-बस same concept.

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सुबह हुई और एग्जाम्स  का टाइम भी आया, लेकिन एग्जामिनेशन  टाइम के ठीक आधा घंटे पहले मुझे होश आया कि ना तो मेरे पास पेन है और ना ही पेन्सिल...

"दो पेन है..??."तैयार होते हुए मैने अरुण से पुछा...

"एक्स्ट्रा मे ब्लैक  है, चलेगा...?"

"दौड़ेगा ...."उसके हाथ से पेन लेकर मैने शर्ट की जेब मे रक्खा और पूछा "पेन्सिल है..."

"एक ही है...."

"गुड, बीच से तोड़ के एक हिस्सा तु रख और एक मुझे  दे..."

जब पेन्सिल को बीच से तोड़ने के लिए मैने कहा तो अरुण मुझे घूरने  लगा...

"अब तू एक पेन्सिल के लिए मत रो बे, पैसे ले लेना..."

इसके बाद मैने आधी टूटी हुई पेन्सिल भी शर्ट की जेब मे डाली...

"भाई, एरेसर भी बीच से काटकर दे ना यार ,वो भी नही है"

अरुण ने अपने दाँत पिसे और फिर बीच से एरेसर भी  काट कर दे  दिया....अब मेरे पास सिर्फ़ एक चीज़ नही था और वो था  "कटर बोले तो Sharpner " मैने एक बार फिर अरुण की तरफ देखा...

"अब और कुछ मत माँग लेना... "

"चल कोई बात नही, आगे-पीछे वालो से माँग लूँगा..."

उसके बाद मुझे ख़याल आया कि अड्मिट कार्ड तो लिया ही नही और सब काम छोड़कर मैं अड्मिट कार्ड ढूँढने लगा, लेकिन अड्मिट कार्ड कही मिल नही रहा था...एक तो वैसे भी देर हो रही थी उपर से एक और प्राब्लम.....

"ये अड्मिट कार्ड कहाँ गया, अरुण तूने देखा क्या..."

"अबे चुप, रिवीज़न  मार रहा हूँ, डिस्टर्ब मत कर...."

मैने बहुत ढूँढा, टेबल पर रक्खी हुई हर एक चीज़ को उलटा-पुल्टा कर देखा, टेबल के उपर नीचे,आगे पीछे हर जगह देखा...खुद के और अरुण के बिस्तर को तहस नहस भी कर दिया लेकिन अड्मिट कार्ड कही नही मिला, एग्जाम्स  की टेन्षन पहले से ही थी और अब अड्मिट कार्ड का नया झमेला....

"अरुण, तू भी ढूँढ ना.... शायद कहीं मिल जाए..."

"A small rectangular block typically made of fired or sun dried clay... Used in a building...."वो मेरी तरफ देखकर याद करते हुए बोला...

"अबे, अड्मिट कार्ड ढूँढ मेरा,मालूम नही कल कहाँ रक्खा था..."

"A small rectangular block typically made of fired or sun dried clay... Used in a building...."

"अबे तेरी... श्राप दे दूंगा फेल होने का , नहीं तो ढूंढ मेरा प्रवेश पत्र ..."

" ये ब्रिक की डेफिनेशन है,पढ़ ले...एग्जाम्स  का फर्स्ट क्वेस्चन यहिच होगा..."

"अच्छा, ले एक बार फिर बोल तो..."

ब्रिक की डेफिनेशन याद करने के बाद मैं फिर अड्मिट कार्ड इधर-उधर देखने लगा और जब रूम मे कही नही मिला तो मैं रूम से निकलकर आस-पास वाले रूम मे जाकर पुछने लगा कि मेरा अड्मिट कार्ड यहाँ तो नही छूटा है और जब वहा भी  नही मिला तो मैं मूह लटका कर रूम मे आया....

"मिला..."

"घंट  मिला..."

"ये ले "बोलते हुए अरुण ने मेरा अड्मिट कार्ड मुझे थमाया और बोला"तेरे ही टेबल पर था...."

".danke.."

"ये कौन सी गाली दी तूने..."

"थैंक्स  बोला, danke को जर्मन मे थैंक  यू कहते है..."

"कक्के, पेपर इंग्लीश मे ही देना.... "

उसके बाद हम दोनो वहाँ से कॉलेज के लिए निकले. जहा हमारी सीटिंग अरेंज्मेंट थी, उस क्लास के बाहर सभी अपने हाथ मे बुक्स,नोट्स पकड़ कर खड़े हुए थे, उन्हे देखकर तो मेरी एक बार और फट गयी... कैसे भी करके मैने खुद को संभाला और एग्जाम  हॉल के अंदर देखा, वहाँ एक यमराज का रूप लिए हुए एक टीचर चेयर पर बैठा  था, जिसके आजू-बाजू बहुत कुछ रक्खा हुआ था...इस वक़्त एग्जाम हॉल मुझे कुरुक्षेत्र का मैदान  लग रहा था,जिसमे 5 मिनट. के बाद मुझे युद्ध करने जाना था....परेशानी ये थी कि आज इस अर्जुन के साथ कोई श्रीकृष्ण नही थे......
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मैं एकदम राइट टाइम पर क्लास के अंदर घुसा और फिर वो वक़्त भी आया जब क्वेस्चन पेपर बाँटा गया, मुझे जब क्वेस्चन पेपर मिला तो मैं कुछ देर तक क्वेस्चन पेपर के फ्रंट पेज को ही देख कर ना जाने क्या सोचने लगा. उस वक़्त  ना जाने कैसे-कैसे ख़याल मुझे  आने लगे...कभी नेक्स्ट वीक रिलीस होने वाली मूवी का नेम याद आता तो कभी कोई दर्द भरा गजल... फिर अचानक ही वेलकम पार्टी की यादें ताज़ा हो गयी, उसके बाद मैने आज तक जितने वो वाली वीडियो देखी थी ,वो मेरे आँखो के सामने चलने लगी और इस पर बॉलीवुड के कुछ गानो ने चार चाँद लगा दिए.....वो गाने कुछ ऐसे थे

"अंधेरी रातों में सुनसान राहों पर,
हर ज़ुल्म मिटाने को एक मसीहा निकलता है
जिसे लोग शाहँशाह कहते हैं..."

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3 Comments

Barsha🖤👑

26-Nov-2021 05:59 PM

सुंदर भाग

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Niraj Pandey

07-Oct-2021 02:11 PM

👌👌

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Seema Priyadarshini sahay

29-Sep-2021 04:29 PM

👏👏wow..

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